हर सुबह गुरुग्राम के कादिपुर गांव के सरकारी स्कूल का धूल भरा मैदान बदल जाता है — वो मैदान जहां 20 से ज्यादा लड़कियाँ क्रिकेट बैट और बॉल लेकर अपने सपने जिंदा करती हैं। ना ब्रांडेड किट, ना स्टेडियम जैसा माहौल — बस मेहनत, जुनून और एक ही सपना: टीम इंडिया के लिए खेलना।
कोच की सोच
इस सफर की शुरुआत कोच अजीत सिंह ने की थी। 2008 में जब वो लड़कों को ट्रेनिंग दे रहे थे, कुछ लड़कियाँ उनके पास आईं और बोलीं — “सर, हम भी खेलना चाहती हैं।” बस, वहीं से बदलाव शुरू हुआ। 2011 तक स्कूल की पहली महिला क्रिकेट टीम बन चुकी थी।
तीन टीमें, एक सपना
अब कादिपुर स्कूल में अंडर-16, अंडर-19 और अंडर-23 की लड़कियों की टीमें हैं। आसपास के गांवों और कॉलेजों की लड़कियाँ भी यहां आकर अभ्यास करती हैं। हर मैच में ये मैदान उनके सपनों का स्टेज बन जाता है।
पैसों की चुनौती
क्रिकेट का जुनून है, लेकिन आर्थिक हालात बड़ी रुकावट हैं। कोच अजीत सिंह बताते हैं कि मैच खेलने के लिए रिक्शा तक का किराया इकट्ठा करना मुश्किल होता है। क्रिकेट किट भी दोस्तों से मिलने वाले पुराने सामान से पूरा होता है।
शैफाली की उड़ान
इसी स्कूल से निकलीं टीम इंडिया की स्टार — शैफाली वर्मा। कोच सिंह उन्हें तब से जानते हैं जब वो सिर्फ 15 साल की थीं। एक फाइनल मैच में शैफाली ने अकेले दम पर जीत दिलाई थी। आज वो दुनिया भर में भारत का नाम रोशन कर रही हैं।
तान्या की कहानी
अंडर-19 टीम की कप्तान तान्या पटेल के पिता सिक्योरिटी गार्ड हैं और माँ चाय की दुकान चलाती हैं। तान्या सुबह घर का काम करती हैं, फिर प्रैक्टिस — और फिर स्कूल। उनका सपना साफ है: “मुझे टीम इंडिया के लिए खेलना है।”
तानुजा की जीत
तानुजा, जिनका सिर्फ एक नाम है, ने राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है। इंदौर में एक नेशनल मैच में उन्होंने आखिरी ओवर में 8 रन डिफेंड करके टीम को जीत दिलाई। उनके घरवालों ने कभी क्रिकेट को ‘शौक’ माना, अब वो इसे करियर मानने लगे हैं।
भारती का जुनून
23 साल की भारती कश्यप विकेटकीपर हैं और धोनी को अपना आदर्श मानती हैं। वो कहती हैं, “इस साल ट्रायल मिस हो गया, लेकिन अगली बार ज़रूर आऊँगी।” उनकी आवाज़ भले ही धीमी हो, लेकिन इरादा एकदम साफ है।
कोच अजीत सिंह
कोच अजीत सिंह सिर्फ कोच नहीं, मसीहा हैं। उन्होंने लड़कियों को चैंपियनशिप जितवाई, लोगों से मदद जुटाई और हर उस सपने को पंख दिए जो कहीं दबा रह गया था। “इन लड़कियों के लिए क्रिकेट आज़ादी है,” वो कहते हैं।
हाल की उपलब्धि
हरियाणा स्टेट स्पोर्ट्स फेस्टिवल में अंडर-19 टीम ने दूसरा स्थान हासिल किया — यह सिर्फ मेडल नहीं, उम्मीद की एक रौशनी थी।
सोच में बदलाव
तानुजा बताती हैं कि अभी भी कई घरों में लड़कियों को खेलने की इजाज़त नहीं मिलती। लेकिन कोच सिंह हर लड़की को एक मौका देना चाहते हैं। “वो हमारे एंकर हैं,” तानुजा कहती हैं।
अंतिम सोच
गुरुग्राम की इन बेटियों की कहानी सिर्फ क्रिकेट की नहीं है, ये जज़्बे और जुनून की कहानी है। मैदान भले ही धूल भरा हो, लेकिन उनके सपने चमकदार हैं। और एक दिन यही लड़कियाँ तिरंगे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लहराएँगी — क्योंकि इनका हौसला असली स्टार पावर है।
FAQs
कादिपुर स्कूल में कितनी महिला क्रिकेट टीमें हैं?
तीन – अंडर-16, अंडर-19 और अंडर-23।
शैफाली वर्मा कोच अजीत सिंह के पास कब ट्रेन हुईं?
जब वह 15-16 साल की थीं।
तान्या पटेल के पिता क्या करते हैं?
वह एक सिक्योरिटी गार्ड हैं।
भारती कश्यप किस खिलाड़ी को अपना आदर्श मानती हैं?
महेंद्र सिंह धोनी को।
कोच सिंह की सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
अर्थिक तंगी और संसाधनों की कमी।











